भारत की प्रागैतिहासिक संस्कति (Prehistoric Culture of India)

मानव के उद्भव एवं विकास तथा उसकी संस्कृति तथा सभ्यता के विकास के सोपानों सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण सामग्री पृथ्वी के अन्दर छिपे हुए हैं। पुरातत्व मानवीय सांस्कृतिक प्रगति का क्रमिक इतिहास प्रस्तुत करने का माध्यम है। मानव सभ्यता के इस उत्थान एवं पतन के इतिहास को अध्ययन की दृष्टि से तीन वर्गो में वर्गीकृत किया गया है-

1-प्रागैतिहासिक काल (Pre-Historic Age)

2-आद्यैतिहासिक काल (Proto-Historic Age)

3-ऐतिहासिक काल (Historic Age)

प्रागैतिहास का अर्थ एव विकास-

हिन्दी भाषा का शब्द प्रागितिहास (प्राक्इतिहास) अंग्रेजी का (Prehistory) का अनुवाद है। इसे इटेलियन में प्रीइस्तोरिया(Preistoria), फ्रेंच भाषा में प्रीस्त्वायर(Prehistorie) कहा गया है। डेनियल विल्सन ने अपनी पुस्तक ‘ दी आकर्योलाजी एण्ड प्रीहिस्टारिक एनाल्स आफ स्काटलैण्ड‘ में सबसे पहले इसका प्रयोग किया। इसका शाब्दिक अर्थ इतिहास के पूर्व युग माना जाता है। प्रागैतिहासिक काल से तात्पर्य उस प्रारम्भिक काल से है, जब जीव तत्व अस्तित्व में आकर पशु-योनि एवं मानव-योनि में क्रमशः पर्दापण किया और अन्त लेखन कला के प्रारम्भिक परिचय के साथ स्वीकार किया। अतः स्पष्ट है कि प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिससे सम्बन्धित लिखित साक्ष्यों का अभाव है। धीरेन्द्रनाथ मजूमदार महोदय अपनी पुस्तक ‘प्रागितिहास’ में लिखते हैं कि इस युग के प्रागैतिहासिक नामकरण का एक कारण यह भी प्रतीत होता है कि यह ऐतिहासिक काल से पहले की मानव कथा का अध्ययन प्रस्तुत करता है। प्रागैतिहासिक मानव पूर्णरूपेण असभ्य और निरक्षर था। प्रारम्भिक युग में मानव का प्रकृति के साथ संघर्ष एवं विषम परिस्थितियों पर विजय का ज्ञान हमें केवल प्रागैतिहास से ही प्राप्त होता है, क्योंकि इस काल में मानव लेखन कला से अनभिज्ञ था। ऐतिहासिक एवं प्रागैतिहासिक काल में मुख्य अन्तर के रूप में साक्षरता और लेखन कला को ही स्वीकार किया जाता है। ऐतिहासिक काल में लिपि या लेखन कला का विकास हो चुका था। प्रसिद्ध पुराविद् डा0 एच0 डी0 सांकलिया के अनुसार ‘‘ लिपि ज्ञान के पूर्व किसी क्षेत्र, देश या राष्ट्र, मानव का इतिहास ही प्रागैतिहासिक है। Prehistory means, the history of a region, a country or a nation, people or race, before it took to or knew writing.

लेकिन डा0 सांकलिया महोदय का यह भी कहना है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के सन्दर्भ में सर्वमान्य नहीं है। क्योंकि यदि इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय इतिहास का काल विभाजन किया जाये तो छठीं शताब्दी ई0पू0 से पूर्व, जिसमें प्रारम्भ, जब मनुष्य अशिक्षित, बर्बर, असभ्य एवं जंगली था, से लेकर सैन्धव सभ्यता एवं वैदिक संस्कृति, तक का समय प्रागैतिहासिक काल में अन्तर्निहित हो जाता है। किन्तु यह मत समीचीन प्रतीत नहीं लगता क्योंकि विशाल वैदिक साहित्य, वेदों से लेकर उपनिषदों तक, निरक्षर व्यक्तिों की रचनायें नहीं हो सकतीं। वैदिक आर्य लेखन पद्धति से अवगत थे अथवा अनभिज्ञ, वर्तमान ज्ञान की अवस्था में इसका समुचित उत्तर देना कठिन है। वैदिक साहित्य के अन्तः साक्ष्य वैदिक काल में लेखन पद्धति की पुष्टि करते हैं, किन्तु पुरातात्विक साक्ष्यों के अभाव में स्पष्ट रूप से कुछ ज्ञात हो पाता। इसके विपरीत सैन्धव सभ्यता नगरीय सभ्यता एवं साक्षर सभ्यता  ज्ञात होती है। क्योंकि सैन्धव पुरास्थलों से प्राप्त मुहरों पर सैन्धव लिपि का अंकन स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है। किन्तु अथक प्रयास के बाद भी अद्यतन पढ़ा नहीं जा सका है। ऐसी स्थिति में इस समय को प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक काल में रखकर आद्यैतिहासिक काल में रखा जाता है। लेकिन यदि भविष्य में होने वाले अनुसंधानों से यदि सैन्धव लिपि को पढ़ लिया जाता है तब इसे ऐतिहासिक काल में स्थान देना पडे़गा। आद्यैतिहासिक काल ऐतिहासिक काल के अति सन्निकट प्रतीत होती है।

प्रागैतिहास एवं विज्ञान-

   प्रागैतिहासिक काल  एवं आद्यैतिहासिक काल का मानव सभ्यता की उत्पत्ति एवं विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। क्यों कि इन्हीं कालों में मानव सभ्यता एवं संस्कृति की नींव पडी़। इसको जानने के लिए हमें विभिन्न आधुनिक विज्ञानों जैसे पुरातत्व (Archaeology) नृविज्ञान (Anthropology) भूगर्भशास्त्र (Geology) प्राणिविज्ञान (Zoology) जीवाश्मविज्ञान (Paleontology) भूगोल (Geography) आदि विषयों की मद्द लेनी पड़ती है। जिसके आधार पर ही हम पृथ्वी पर मानव के आविर्भाव एवं उसके विकास की प्रक्रिया के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

प्रागैतिहास एवं नृतत्व विज्ञान से सम्बन्ध-    

          नृतत्व आधुनिक विज्ञानों की श्रेणी में अपेक्षाकृत नवीन है, फिर भी इसका सम्बन्ध मानव के आकार- प्रकार आचार- विचार एवं क्रिया-कलापों के अध्ययन से है। डा0 धीरेन्द्रनाथ मजुमदार के अनुसार वास्तव में प्रागैतिहास नृतत्व का वह अंग है जो उत्पत्ति के अध्ययन में रूचि रखता है। आदि मानव की कृतियों के अध्ययन द्वारा यह जैविक एवं सांस्कृतिक नृतत्व के अटूट सम्बन्ध एवं सम्बन्ध पार्थक्य को पूर्ण रूप से स्थापित करता है। साथ ही वह यह भी निश्चित करता है कि मानव जीवन श्रेणियों एवं विभागों में नहीं रहा करता है। समग्रता और बारम्बारता इसके मुख्य गुण हैं। इस प्रकार प्रागैतिहास नृतत्व की समन्विता को पुष्ट करता है।’

 भूवैज्ञानिक महाकल्प-       

   भूतत्व वैज्ञानिकों ने मानव की प्राकृतिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए पृथ्वी का काल विभाजन पांच कल्पों (Eras) में किया है। जो इस प्रकार हैं-

1.आदिकाल(Archaeozoic)

2.प्रादि कल्प(Proterozoic)

3.पुरा कल्प  (Palaeozoic)

4.मध्य कल्प(Mesozoic)

5.नूतन कल्प(Cenozoic)

कल्प को काल या वर्ग तथा काल को युग या अवस्थाओं में बाँटा गया है। ये कल्प, काल एवं युग दीर्घकाल को व्यवस्थित करने तथा उसे सुरूचि पूर्ण बनाने का मानव का प्रयास है।

प्राथमिक काल (Archaeozoic)

जीवों की उत्पत्ति को आधार मान कर कल्पों का वर्गीकरण किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 2,000 वर्ष पूर्व जीवों की उत्पत्ति पृथ्वी पर हुई थी। इन्हें प्रायःकीटडिम्ब कहा जाता है।

पुरा कल्प (Palaeozoic)

पुरा कल्प अनुमानतः 300 से 320 सहस्त्र साल पहले हुआ था। भौतात्विक कल्प के कई वर्गीकरण किये गये हैं। इसका प्रथम वर्गीकरण त्रिखण्ड काल(Cambrian) और अन्तिम गिरि काल (Permain) के नाम से जाना जाता है। सम्भवतः इसी समय बिना मेरूदण्ड (Invertebrate life)वाले जीवों की उत्पत्ति हुई।

मध्य कल्प Mesozoic)

मध्य कल्प लगभग 130 से 140 सहस्त्र वर्ष पहले हुआ। इसे ट्रियासिक (Triassic) जुरासिक (Jurassic) और कराटसियस (Crataceaous) नामक तीन कालों में वर्गीकृत किया जाता है। मेरूदण्ड वाले सरीसृप जीवों (Vertebrate life) की उत्पत्ति सबसे पहले इसी कल्प में हुई।

नूतन कल्प(Cenozoic)

मध्य कल्प के बाद नूतन कल्प या नव जीवन युग आया। मानव सभ्यता के विकास में इस कल्प का विशेष महत्व है। क्यों कि इसी कल्प में मानव प्रजातियों की उत्पत्ति हुई। आधुनिक वनस्पति जीवन एवं स्तनपायी पशुओं का भी काल कहा जाता है। जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन भी इसी समय काफी मात्रा में हुए। जिसके फलस्वरूप वनस्पतियों एवं जीवों के अस्तित्व इस समय रहा। जो जलवायु सम्बन्धी परिवर्तनों के संघर्ष में सफल रहे। जिससे पृथ्वी पर जंगलों एवं नये प्रकार के जीवों की उत्पत्ति अधिक मात्रा में हुई। नूतन कल्प को निम्न कालों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

पुरानूतन युग(Palaeocene)

पुरानूतन युग में नर वानर (लंगूर Lemurs) प्राणियों का उद्भव।

आदि नूतन युग(Eocene)

आदिनूतन युग में विकसित स्तनपायी जीव की उत्पत्ति अर्थात् प्राइमेट का विकास हुआ।

अल्पनूतन युग(Oligocene)

इस युग में बंदर, कछुआ, मगर का विकास हुआ।

मध्यनूतन युग(Miocene)

इस युग में कपियों (Anthropoid Apes) का विकास हुआ।

अतिनूतन युग(Peiocene)

अतिनूतन युग में होमोनाइड्स का विकास, एवं जंगलों का विकास और तापमान में गिरावट आयी।

प्रतिनूतन युग(Pleistocene)

इस काल में जलवायु सम्बन्धी पर्याप्त परिवर्तन हुए। उत्तरी क्षेत्रों में हिमपात हुआ। जिसे हिमयुग (Glacial Period) कहा जाता है। जिसके फलस्वरूप प्राणियों को इन बदलावों के अनुकूल अपने को ढालना पड़ा। संभवतः इसी युग में मानव ने सर्वप्रथम उपकरणों का निर्माण प्रारम्भ किया।

नूतन युग(Holocene)

जीव विकास का आखिरी युग नूतन युग या सर्वनूतन युग कहलाता है। इसका आरम्भ लगभग 12 हजार वर्ष पूर्व हुआ जाता है। यह मानव सभ्यता का चरमोत्कर्ष युग माना जाता है। इसी समय से मानव के इतिहास को जानने, उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को समझने की आवश्यकता महसूस हुई।

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